Monday 23 December 2013

सन्देश २०१४ 

बस्ती में जब से हम आ  ये    बन्दर से घिरा अपने को पाये 
बंदर की हरकत देखकर  छै मास का समय        बिताये 
ये बंदर बड़े सभ्य है बिन छेड़े किसी को ना काटे 
हम  अपने  रास्ते  जाते है वे अपने राह पे आते
इधर उधर उछलते  कूदते    अपने को वे सदा     स्वस्थ    रखते 
हम मानव  उद्यम से दूर हुए  अस्व्स्थ सदा हम सब  दीखते 
बन्दर को जितना भूख लगे उतना ही वे खाते है 
हम मानव दिन भर खाते फिर भी  भूके  रह जाते है 
बन्दर कंद  मूल फल  खा खुद को    स्वस्थ रखते 
हम मानव पेप्सी जंक फ़ूड खा खुद रोगी बन जाते 
दिन भर बन्दर की   गतिविधीयां साम  ढले सो जाते है
मानव रात भर जग कर अवैध काम सब करते   है
कल की  फिक्र नहीं बन्दर को जो पा जाता खुश रहता है
मानव को कल की      चिंता हर समय चिंतित  दिखता है
बन्दर अपनी पत्नी बच्चो के संग   जीवन भर साथ निभाता है 
मानव अपने पत्नी को छोड़ दूसरो के चक्कर में रहता है 
बन्दर सदा पत्नी के संग सैकस करता है 
पर मानव   होमोसेक्सुअल को उचित ठहरता है 
बन्दर अपने सभी बच्चो को प्यार से  पाला करता  
मानव  बच्चा  पाने को भून हत्या में लिप्त हो जाता 
बन्दर जाती धर्म के नाम पर किसी से लड़ाई नहीं करता संस्कार 
हम मानव जाती धर्म के नाम पर मानव से नफरत करते 
हाथ छोड़ चम्मच से खाने से मानव आधुनिक नहीं कहलायेंगे 
जब तक  विचार  में उन्नति नहीं  आयेगी हम पीछे होते   जायेंगे 
मानव के  पूर्वज है बन्दर अपनी सभ्यता नहीं छोड़े १२ 
हम मानव विकसित है  पर परिवार    संग समाज को   तोरे  
सभ्यता हमें नहीं  सिखाते हम  इतने आधुनिक बन  जाये 
अपने  संस्कार भुला कर पच्छिम कि सभ्यता   अपनाये 
३१.१२  .२०१४           

Thursday 19 December 2013

vidaii 2013

विदाई २०१३ 

तेरह की हो गयी तेरही अब चौदह की बारी है ।
नये वर्ष ने दस्तक दे दी  स्वागत की तैयारीहै 
तेरह कि संख्या को अशुभ सभी ने पाया है 
देश के नेताओँ ने भी अमंगल इसे बताया है 
अटल जी ने तेरह को शपथ लिया तेरह दिन सरकार चलाई 
बहुमत साबित कर न पाये इस्तीफा दे चुनाव करायी 
राहुल का सपना कठिन हो गया तेरह कांग्रेस को  रास ना आया 
चार राज्यों में हुई फजीहत आगे का सफ़र कठिन बनाया 
इस विभाग के मेरे  कुछ साथी तेरह में सब विदा हो गए 
बहुत दिनों तक साथ रहे अब हमें अकेला छोड़  चले गए 
चौदह साल मुख्यालय की  सेवा की अंत समय बस्ती में ठेला 
पत्नी प्रयाग में जपती माला मैं बस्ती में पड़ा अकेला 
जिन अपनों पे  किया भरोसा  उन अपनों ने विश्वास को तोड़ा 
अपना घर वे जला रहे है बने मेरे सुख शांति में रोड़ा  
ज़िन्दगी भर  प्रयास किया परिवार संग सगे सम्ब्न्धी को जोड़ा 
अनजाने में क्या गलती हुई क्यों हमें सरे राह  में छोड़ा
जिन्हे सदा सम्मान दिया जिन्हे सर आँखों पर बिठाया 
क्यों हमसे नाराज हो गए कुछ भी मेरे समझ न आया
सभी अपनों का साथ दिया सुख दुःख में काम  में आया
उनमे भी अविस्वास पनप गया ऐसा बुरा समय यह आया 
अनजाने में भूल यदि हुई उसके लिए माफ़ कर देना 
है भगवन से यही प्रार्थना सदा सभी को खुश ही रखना 
नए वर्ष वर्ष  में मतभेद भुलाकर आपस में मिलजाना  है
हम सब एक है एक रहेंगे यह विस्वास जगाना है
नयावर्ष२०१४सभी को शुभ हो खुशहाली  सबको दिखलाये
हर दिन सभी प्रसन्न रहे सब प्रगति करें बुलंदी पर    जाएं 

जी के श्रीवास्तवा २०. १२ २०१३ .